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क्या है क्या नहीं है
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Mukund Lath

क्या है क्या नहीं है

दार्शनिक लेखन में संवाद विधि का प्रयोग सर्वप्रथम प्लेटो ने कियाए ऐसा माना जाता हैए किन्तु उपनिषद् और गीता भी संवाद रूप में ही रचित हैं। इन सब संवादों में एक वक्ता है और दूसरे केवल श्रोता। पर मुकुन्दजी के इन संवादों के पाँच सहभागी वक्ता और श्रोता दोनों हैं।


मुकुंद जी ने यहां दर्शन के आधार भूत प्रश्न 'अस्तित्व' को विषय बनाया है - 'क्या है' और 'क्या  नहीं हैं। इन संवादों की एक काफी प्रगल्भ पात्र, अनुभूतिए अस्तित्व के ऊपर सार्थकता की बात उठाती है और प्रेम को सार्थक बताती है। अस्तित्व की कोटि सार्थकता को बनाने पर सारी बात दूसरे स्तर पर चली जाती है - तब कुछ सार्थक हुए बिना अस्तित्ववान् नहीं हो सकता। इन संवादों में यह बात बार बार आई है - चौथे संवाद के तो केन्द्र में है।


दूसरे जिन भी दार्शनिकों ने - संवाद लेखकों सहित - अस्तित्व के प्रश्न पर विचार किया हैए उन्होंने अपना एक सिद्धान्त प्रतिपादित किया है। किन्तु तब वह अनेक प्रतिपादनों में एक हो जाता है, उसमें विचार का खुलापन नहीं रहता। खुलापन तभी रह सकता है जब संवाद के सारे सहभागी अपने अपने पक्षों के साथ भाग ले सकें, जिसमें एक का है दूसरों के विभिन्न 'नहीं है के साथ बिना विसंगति के रह सके। यह इस संवाद में संभव हो पाया है।