Mukund Lath
पृथिवी-सूक्त
हमारा समय प्राचीन ग्रन्थों को मूल या अनुवाद में पढ़े-गुने बिना उनसे तरह-तरह की अतर्कित हिंसा और अनाचार का औचित्य प्रतिपादित करने का है। पवित्र वेद इसका अपवाद नहीं है। मंगलमयी, हिरण्यवक्षा, विश्वम्भरा, पृथिवी की अद्भुत स्तुति करने वाला पृथिवी-सूक्त' विद्वान्-कवि मुकुन्द लाठ ने हमारे लिएए हमारे अपढ़ समय के लिएए समझ और सूक्ष्मता के साथ अनूदित किया है। इस सूक्त में कहीं कहा गया है कि 'कभी पृथ्वी को/ हम पीड़ा न दें' तो यह अपेक्षा भी की गयी है कि पृथ्वी, मुझे गिरने से रोक लेना।' मुकुन्द जी विद्वान-कवि होने के साथ संवेदनशील कुशल चित्रकार भी थे। उन्होंने पृथिवी-सूक्त के अपने इस अनुवाद को स्वयं अपने रेखा-चित्रों से अलंकृत भी किया है। इस तरह यह अनूठा अनुवाद है : हिन्दी में ऐसा कला-समृद्ध अनुवाद शायद ही कोई और हो। इस अनुवाद को पुस्तकाकार प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है, लेकिन उन के हाल में हुए निधन के बाद उन का यह पहला प्रकाशन हमारे लिए मार्मिक भी है।