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स्वीकरण – संस्कृरत मुक्तिकों का रूपान्तर
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स्वीकरण - संस्कृरत मुक्तिकों का रूपान्तर

स्वीकरण में संस्कृत के कुछ मुक्तकों का हिन्दी में स्वीकरण है : कविता का कविता में रूपान्तर।


मुक्तक सुभाषित या सूक्ति भी कहलाते थे ये एक ही छन्द में पूरी हो जाने वाली कवितायें है। सूक्ति के गागर में सागर भरने का शिल्प, गुप्त युग के बाद के संस्कृत कवियों को बहुत प्रिय रहा है। उन की सूक्तियों का एक बडा भण्डार आज भी ११वीं-१२वीं सदी और उस के बाद के सुभाषित' या 'सूक्ति: संग्रहों में सुरुचि से सजा हुआ मिलता है।


इन संग्रहों में छठी-सातवी सदी से आगे के कवियों / कवयित्रियों की नई प्रतिभा का प्रगल्म परिचय मिल्ना है। एक ऐसे काव्य बोध का उन्मेष मिलता है जिस में भाषा और भाव का अभिनव 'आधुनिक स्पन्द है जो आज भी मुग्ध कर देता है।


सूक्ति का कवि सहज पर विदग्ध लीला-भाव का कवि है। उस की कविता बड़ी इहलौकिक कविता है। आठ पहर के अनुभव के प्रति, अपने चारों ओर के लोक के प्रति जागरूक, चाहे वह मानव जीवन को बहुरंगी सूक्ष्म-स्थूल सगस्थली होए, या प्रकृति की चिरन्तन चित्रशाला समी उस का विषय है। प्रकृति से संस्कृत के कवियों का पुराना रागमय सम्बन्ध रहा है। सक्तिकारों में यह राग एक नया स्वर, एक नया नाटक-कासा-संवेग लेकर आता है।


कवि कर्म के प्रति मी लहुत सजग थे ये कवि-इन की कई सूक्तियाँ कविता पर कविता है। संस्कृत की ऐसी ही कुछ विविध-भाव-बोधनयी सक्तियों को चुन कर यहाँ हिन्दी के नये मुक्तकों में बांधा गया है।


अन्त में, कवि के अपने कुच लन्द हैं, जो संस्कृत कविता के पाव और शिल्य से अनुप्राणित हैं। इनमें स्वीकरण को एक नया उन्मुक्त आयाम मिलता है।।